लम्हा

इतने गिले थे हमसे तो एक लम्हा ठहर लेते
थामते हाथ, देते साथ
पूछते प्यार से क्या दिल में है जो बता नहीं पा रहे
कौन सा है सैलाब खयालो का, जो दबा नहीं पा रहे
हम हंस के सारे अरमां बोल देते
भरे हुए वो राज़ पल में खोल देते
पर तुम चलते रहे,
ख़ामोशीमें मे तुम्हे देखता रहा
आँखों मे तुम्हारी जुदाई का डर देखता रहा
फासले बढ़ते गए और तन्हाई भी
वक्त नहीं था, फिर भी इंतजार करता रहा
तुम्हे जाने का है डर, इतना तो इज़हार कर लेते
इतने गिले थे हमसे तो, बस एक लम्हा ठहर लेते

- Asthir Amdavadi

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