काश...
हमारी तकदीर कहा की तुम्हारी फुर्सद का हिस्सा बन सके,
तुम्हारी कोई तस्वीर कहा की जिसे सिने से लगा सके
नजरो से दूर हो पर, अब भी हमें बहोत सताते हो
दिल से कैसे निकाले तुह्मे, तुम अब भी ख्वाबों में आते हो
तुम्हारे इश्क में हमारे दिन रात चलते है,
यादो में तुम्हारी हर रोज़ आहें भरते है,
कई बार दिल को समजना चाहा मगर;
अरमां हसीन लम्हों के दिल में अभी भी जलते है.
क्या हुआ अब तुम सामने देखने से भी कतराते हो,
ऐसी कोई ज़ंजीर कहा की जो हमारी नजरो पे लगा सके,
काश हम भी कभी अपनी याद में तुम्हे दीवाना बना सके,
पर हमारी तकदीर कहा की तुम्हारी फुर्सद का हिस्सा बन सके.
- अस्थिर अमदावादी
Kush Vyas
(First line suggested by Sunny Goklani! Thanks for that! )
wah wah wah wah!!! man!! start publishing your work.. m pretty sure it will b acclaimed pretty well...
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