ख़ामोशी
कब से ये ख़ामोशी हम से कह रही
कुछ बाते है अभी भी अनकही
ज़ज्बात कुछ है अभी भी बिखरे हुए
खुबसूरत से लम्हे है कुछ ठहरे हुए
सहमी सी आँखे ये तुम्हारी क्यों है बह रही
वक़्त से ये जैसे हो कुछ कह रही
पर ये वक़्त है, कहा किसीकी सुनता है
गर एक ख्वाब टूटे, तो दिल हज़ार नए बुनता है
इसलिए,हम तुम्हारे ही रहेंगे, गर जाये कही
क्योकि ये फासलों की दूरियाँ हमारे दिलो में नहीं
एक दिन हम यहीं वापस लौट आयेंगे
और आपकी मुस्कराहट फिर से लायेंगे
ये वादा है हमारा, तुम करना यकीन
हमारी खामोशियाँ है आपसे ये कह रही
दिल की जुबां बोल गयी वो हर बात अनकही
क्योकि हर बात लफ्जों में हो, ये ज़रूरी नहीं
- Asthir Amdavadi